नरेन्द्र कोहली के साहित्य में “समष्टि परिवार” एक दृष्टिकोण

Authors

  • गीता कुमारी एन ठाकुर राम बहुमुखी क्याम्पस, वीरगञ्ज, त्रिभुवन विश्वविद्यालय

DOI:

https://doi.org/10.3126/av.v9i1.74102

Keywords:

अभिरुचि, पारदर्शी, कर्तव्यनिष्ठ, पलायन, समष्टि, वंचित, निरूपण

Abstract

प्राचीन काल से लेकर आज तक समाज के स्वरूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं । प्रत्येक काल में समाज अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक, धार्मिक परिस्थितियों को उजागर करता है । समाज का स्वरूप इसी पर आधारित है । आज की प्रस्तुत समस्या व्यष्टिवादिता है । अहं ने मनुष्यको “मैं” में जीना सिखा दिखा दिया है । परिवार विघटित होता नजर आ रहा है । पारिवारिक विघटन को रोकने का नरेन्द्र कोहली अपने साहित्य में सतत प्रयास करते है । वह अपनी उपन्यास, कहानी तथा व्यंग्य रचनाओं मे परिवार को एक नया आयाम देते है, जो आगे आनेवाली पीढियों के मार्ग को प्रशस्त करती है एवम् जीवन जीने के तरीके को एक नया स्वरूप प्रदान करती है ।

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Author Biography

गीता कुमारी एन, ठाकुर राम बहुमुखी क्याम्पस, वीरगञ्ज, त्रिभुवन विश्वविद्यालय

हिन्दी विभाग

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Published

2019-12-31

How to Cite

एन ग. क. (2019). नरेन्द्र कोहली के साहित्य में “समष्टि परिवार” एक दृष्टिकोण. Academic Voices: A Multidisciplinary Journal, 9(1), 93–98. https://doi.org/10.3126/av.v9i1.74102

Issue

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Articles